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न्याय में देरी: क्या भारतीय अदालतों के सुधार पर सरकार का ध्यान है? Modi Advocates Justice Priority
चाचा का धमाका की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'ईज ऑफ जस्टिस' को 'ईज ऑफ लिविंग' और 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के लिए अनिवार्य बताया है, परंतु देश की न्याय व्यवस्था आज भी लंबित मामलों के विशाल बोझ तले दबी है।
वर्तमान में भारत में लगभग 5.3 करोड़ मामले अदालतों में अटके पड़े हैं, जिनमें से 4 करोड़ से अधिक जिला अदालतों में, 60 लाख से ज्यादा उच्च न्यायालयों में और हजारों मामले सर्वोच्च न्यायालय में वर्षों से सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं।
यह स्थिति भारतीय राजनीति और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है, जहां हर नेता से त्वरित और निष्पक्ष न्याय की अपेक्षा की जाती है।
नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने इस बात पर जोर दिया है कि जब लोग कहते हैं 'मैं तुम्हें कोर्ट में देख लूंगा', तो यह उनके न्याय-तंत्र में गहरे भरोसे का प्रतीक होता है।
इस भरोसे को बनाए रखना एक गंभीर जिम्मेदारी है।
न्याय में देरी को अक्सर अदृश्य सजा माना जाता है, क्योंकि यह न्याय से वंचित करने के समान है।
कई मामलों में फैसले आने में 5 से 15 साल लग जाते हैं, जिससे आम जनता का न्याय प्रणाली पर से विश्वास डगमगा सकता है।
यह न सिर्फ व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करता है बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति को भी बाधित करता है, जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।
इस विशाल समस्या का समाधान केवल प्रशासनिक सुधार से ही संभव है, जिसमें न्यायिक प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण और रिक्त पदों को भरना शामिल है।
यह किसी एक बीजेपी या कांग्रेस जैसी पार्टी का नहीं, बल्कि संपूर्ण राजनीतिक नेतृत्व का सामूहिक दायित्व है कि वे ऐसी नीतियां बनाएं जो न्याय को सुलभ और त्वरित बना सकें।
जब तक न्याय प्रणाली प्रभावी और कुशल नहीं होगी, तब तक ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लक्ष्यों को पूरी तरह से हासिल करना कठिन होगा।
न्याय केवल अमीरों का अधिकार न होकर, देश के हर नागरिक का मूलभूत अधिकार और विश्वास का आधार बनना चाहिए।
- भारत में 5.3 करोड़ मामले लंबित, न्याय प्रणाली पर बढ़ता दबाव।
- न्याय में देरी से जन-विश्वास में कमी, सीजेआई ने जताई चिंता।
- पीएम मोदी का 'सुगम न्याय' लक्ष्य, प्रशासनिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता।
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Posted on 27 November 2025 | Stay updated with चाचा का धमाका.com for more news.