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क्या शहरीकरण की राजनीति में फंसी है देश की ग्रामीण प्रतिभा? राजनीति Mumbai Arrival Changed Life
मुंबई में, 1975 का साल था जब एक युवक नागपुर से आकर विक्टोरिया टर्मिनस पर उतरा।
एन. रघुरामन के कॉलम पर आधारित 'चाचा का धमाका' की रिपोर्ट के अनुसार, उस पल ने उनके जीवन की दिशा तय की।
उन्होंने बंबई की भव्यता और फिल्म अभिनेता मनोज कुमार से अप्रत्याशित मुलाकात के बाद इस महानगर में ही अपना भविष्य गढ़ने का संकल्प लिया।
यह व्यक्तिगत कहानी अनजाने में भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है: हमारी प्रतिभाएं आज भी शहरों तक ही क्यों सीमित रह जाती हैं?लेखक के अनुभव के अनुसार, उस समय रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती थी, और मुंबई जैसे शहरों ने ही उन सपनों को पूरा करने का मौका दिया।
यह स्थिति आज भी बहुत बदली नहीं है, जहाँ ग्रामीण और छोटे शहरों के युवा अवसरों की तलाश में महानगरों की ओर पलायन करते हैं।
यह पलायन, जो दशकों से जारी है, अक्सर चुनाव के दौरान एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है, जब विभिन्न नेता ग्रामीण विकास और स्थानीय रोजगार सृजन के बड़े-बड़े वादे करते हैं।
क्या इन वादों की हकीकत उतनी ही मजबूत है जितनी शहरी चमक-दमक?देश की दो प्रमुख पार्टियां, कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही संतुलित क्षेत्रीय विकास की बात करती हैं।
लेकिन, लेख इस बात पर विचार करने को मजबूर करता है कि आखिर क्यों इतने वर्षों बाद भी सरकार की नीतियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त अवसर पैदा करने में सफल नहीं हो पाई हैं।
यह प्रतिभा के एकतरफा शहरीकरण को रोकने और देश के हर कोने में समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रभावी नीतियों की आवश्यकता पर जोर देता है।
यह स्थिति भारत के समग्र विकास और ग्रामीण-शहरी संतुलन के लिए एक निरंतर चुनौती बनी हुई है।
- लेखक की 1975 मुंबई यात्रा शहरी प्रतिभा के आकर्षण पर विचार करती है।
- ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन पर राजनीतिक वादों पर सवाल उठाए गए।
- कांग्रेस-बीजेपी की नीतियों व ग्रामीण-शहरी असंतुलन पर चर्चा की गई है।
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Posted on 24 November 2025 | Stay updated with चाचा का धमाका.com for more news.