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आध्यात्मिक पथ पर आलस्य से बचें: स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र प्रकाशित Laziness Is Human's Enemy
चाचा का धमाका की रिपोर्ट के अनुसार, जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि ने अपने जीवन सूत्रों में मानव जीवन के सबसे बड़े शत्रु, आलस्य, पर प्रकाश डाला है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि गतिशील और विचारशील रहना ही सच्चा जीवन है।
निरुद्योगी अवस्था में रहना हमारी प्रगति को बाधित करता है और हमें अपने लक्ष्यों से विमुख कर देता है।
धर्म के मार्ग पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति भी निरंतर प्रयास और सक्रियता की मांग करती है।
स्वामी जी के अनुसार, "चरैवेति-चरैवेति" यानी निरंतर चलते रहना ही जीवन का वास्तविक सार है।
रुक जाना या ठहर जाना जीवन का अंत है, और जो व्यक्ति गतिहीन हो जाता है, उसका भाग्य भी ठहर जाता है।
वे बताते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्मों में निरंतर संलग्न रहता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है।
यह सिद्धांत केवल भौतिक सफलता तक सीमित नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा में भी उतना ही प्रासंगिक है।
चाहे वह किसी मंदिर में सेवा हो, नित्य पूजा का विधान हो, या किसी तीर्थ की यात्रा, सभी में कर्मठता और संलग्नता आवश्यक है।
आलस्य हमें इन पवित्र कार्यों से दूर कर सकता है, जिससे हम ईश्वर और स्वयं से विमुख हो सकते हैं।
स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के इन जीवन सूत्रों से प्रेरणा लेकर हमें अपने जीवन में सक्रियता और उद्यमिता को अपनाना चाहिए।
वे हमें आत्म-अनुशासन और निरंतरता का पाठ पढ़ाते हैं, जिससे हम न केवल अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी स्वयं को समृद्ध कर सकें।
देवता की कृपा और जीवन में सिद्धि प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि हम आलस्य का त्याग करें और निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहें।
- स्वामी अवधेशानंद जी के अनुसार, आलस्य जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है।
- निरंतर गतिमान रहना और कर्मठता ही जीवन की सच्ची सफलता है।
- भाग्य भी उसी का साथ देता है, जो व्यक्ति निरंतर आगे बढ़ता रहता है।
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Posted on 21 November 2025 | Follow चाचा का धमाका.com for the latest updates.