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क्या नारद मुनि का अहंकार बना उनके आध्यात्मिक पतन का कारण? जानें धर्म का मर्म Narada Muni's Prideful Downfall
चाचा का धमाका की रिपोर्ट के अनुसार, सनातन धर्म की पवित्र गाथाओं में वर्णित एक घटना हमें अहंकार के दुष्परिणामों का स्मरण कराती है।
यह प्रसंग नारद मुनि के उस समय का है जब वे कामदेव पर विजय पाकर गहन अहंकार से ग्रस्त हो गए थे।
देवों के देव महादेव भगवान शंकर ने अपनी दिव्य दृष्टि से इस बात को भाँप लिया था कि मुनि का हृदय अभिमान के विष से दूषित हो चुका है।
यह विष मंद पड़ने के बजाय तीव्र वेग से उनके मन-मंदिर में फैलता जा रहा था, जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा खतरे में पड़ सकती थी।
भोलेनाथ के मन में नारद के प्रति गहरी करुणा उमड़ पड़ी।
वे जानते थे कि यदि नारद मुनि इसी विकृत कथा को लेकर श्रीहरि के समक्ष प्रस्तुत होंगे, तो वे स्वयं अपने कल्याण का मार्ग अवरुद्ध कर लेंगे।
इसी विचार से प्रेरित होकर, भगवान शंकर ने अत्यंत विनम्र स्वर में नारद से विनय की कि वे जैसी कथा उन्हें सुना चुके हैं, वैसी ही उलट-पुलट बातें प्रभु हरि के समक्ष कदापि न कहें।
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि कभी ऐसा प्रसंग उठे भी, तो मुनि सौम्यता से विषय को बदल दें।
यह चेतावनी इतनी स्पष्ट थी कि इससे अधिक कुछ कहा ही नहीं जा सकता था।
किंतु, नारद मुनि के अहंकार ने उनके विवेक पर पर्दा डाल दिया था।
उन्हें लगा कि महादेव उनके पराक्रम से ईर्ष्या कर रहे हैं और उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे हैं ताकि संसार उन्हें परमयोगी न कहने लगे और महादेव की प्रतिष्ठा कम न हो जाए।
इस प्रकार, मुनि ने देवों के देव के सद्भाव को गलत समझा, जो उनके आगामी आध्यात्मिक परीक्षा का कारण बना।
यह घटना हमें सिखाती है कि धर्म के मार्ग पर चलते हुए भी अहंकार से बचना कितना आवश्यक है, क्योंकि यह भक्त को स्वयं देवता से भी विमुख कर सकता है।
- नारद मुनि कामदेव पर विजय के बाद अहंकार से ग्रस्त हो गए।
- भगवान शंकर ने नारद को श्रीहरि के समक्ष विकृत कथा न सुनाने की चेतावनी दी।
- मुनि नारद ने शिव की चेतावनी को ईर्ष्या समझकर अनसुना कर दिया।
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Posted on 24 November 2025 | Keep reading चाचा का धमाका.com for news updates.