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धर्म रहस्य: जय-विजय के अहंकार से क्यों हुआ भगवान का अवतार? धर्म Lord Shankar Divine Religion Mysteries
चाचा का धमाका की रिपोर्ट के अनुसार, कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती के समक्ष श्रीहरि के दिव्य चरित्र का वर्णन करते हुए धर्म के गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाल रहे थे।
उनका विशेष ज़ोर जय और विजय के प्रसंग पर था, जहां अहंकार रूपी अंधकार ने बैकुण्ठ के इन द्वारपालों के विवेक को पूरी तरह ढक लिया था।
वे यह भी न जान सके कि जो साधु संत उनके द्वार पर आए हैं, उनके श्रीचरण तो स्वयं बैकुण्ठ के द्वार के समान पवित्र हैं।
साधुजनों के चरणों की धूल से ही संसार के पाप नष्ट हो जाते हैं, परंतु जय-विजय ने अहंकारवश उनके साथ दुष्टता का व्यवहार किया, जो आध्यात्मिक पतन का कारण बना।
कबीर साहब ने इस विषय पर सटीक कहा है कि साधु के लिए मृत्यु भय नहीं, बल्कि परमानंद का द्वार है।
उन्होंने यह भी बताया है कि जो आनंद संतों की संगति और सेवा में है, वह तो बैकुण्ठ के सुख से भी बढ़कर है।
जय और विजय इस सत्य को समझ न सके; उन्हें भ्रम हुआ कि सनकादि मुनि बैकुण्ठ के दर्शन के लिए तृषित हैं, जबकि वस्तुतः वे ईश्वर के नाम की पूजा और आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत थे।
इस अनादर का परिणाम यह हुआ कि उन्हें अपने कर्मों के फलस्वरूप बैकुण्ठ से निष्कासित होना पड़ा, जिससे भगवान को पृथ्वी पर विभिन्न अवतार लेने पड़े।
यह कथा दिखाती है कि कैसे अहंकार बड़े से बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को भी अपने देवता से दूर कर सकता है और कैसे ऐसे प्रसंग ही आगे चलकर धर्म के स्थापना हेतु नए अवतारों के सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- भगवान शंकर ने पार्वती जी को जय-विजय के पतन का प्रसंग सुनाया।
- अहंकारवश जय-विजय ने सनकादि मुनियों का अनादर किया, जो बैकुण्ठ के द्वार पर आए थे।
- यह घटना भगवान के अवतार के पीछे के गहन आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करती है।
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Posted on 13 October 2025 | Follow चाचा का धमाका.com for the latest updates.