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नवरात्रि सप्तमी: मां कालरात्रि की पूजा से दूर करें भय, जानें आध्यात्मिक महत्व Kalaratri Saptami Fear Liberation
चाचा का धमाका की रिपोर्ट के अनुसार, आज (29 सितंबर) नवरात्रि का आठवां दिन है, लेकिन तिथि सप्तमी होने के कारण देवी कालरात्रि की विशेष पूजा का विधान है।
यह दिन भक्तों के लिए भय मुक्ति और शत्रु नाश का महत्वपूर्ण अवसर लेकर आता है।
मां दुर्गा का सातवां स्वरूप देवी कालरात्रि अत्यंत विकराल और डरावना प्रतीत होता है, फिर भी उनकी पूजा भक्तों के सभी भय और कष्टों को हर लेती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कालरात्रि की आराधना से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
इस पवित्र अवसर पर, गुड़ का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो देवी को प्रिय है।
यह विशेष 'पूजा' 'धर्म' और 'आध्यात्मिक' उन्नति के लिए एक शक्तिशाली माध्यम मानी जाती है।
पौराणिक 'कथाओं' के अनुसार, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे शक्तिशाली असुरों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था, जिससे 'देवता' भी बहुत दुखी थे।
देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव ने देवी पार्वती से सृष्टि की रक्षा करने का अनुरोध किया।
देवी पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का संहार किया।
हालांकि, रक्तबीज को मिले वरदान के कारण, उसके रक्त की बूंदों से अनगिनत और रक्तबीज उत्पन्न हो रहे थे, जिससे देवी दुर्गा को भी उसे समाप्त करने में कठिनाई हो रही थी।
इस स्थिति में, क्रोधित होकर देवी दुर्गा ने 'कालरात्रि' का भयंकर रूप धारण किया।
कालरात्रि ने रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पीकर उसके पुनर्जन्म को रोका और अंततः उसका वध कर तीनों लोकों को शांति प्रदान की।
यह 'मंदिर' और 'तीर्थ' स्थलों पर विशेष रूप से पूजी जाने वाली देवी हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं।
इसलिए, नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर देवी कालरात्रि की उपासना भक्तों को अदम्य साहस और विजय का आशीर्वाद देती है, जो सदियों से चली आ रही एक गहन आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है।
- सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा से भय और शत्रुओं का नाश होता है।
- मां कालरात्रि को गुड़ का भोग चढ़ाएं, यह शुभ और लाभकारी माना जाता है।
- रक्तबीज असुर का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने कालरात्रि रूप लिया।
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Posted on 29 September 2025 | Follow चाचा का धमाका.com for the latest updates.